तेरे खुशबू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे..
प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे..
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे..
जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रक्खा..
जिनको एक उम्र कलेजे से लगाए रक्खा..
दीं जिनको जिन्हें ईमान बनाए रक्खा..
तेरे खुशबू मैं बसे ख़त मैं जलाता कैसे..
जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद पानी की तरह..
याद थे मुझको जो पैगाम-ए-जुबानी की तरह..
मुझको प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह..
तेरे खुशबू मैं बसे ख़त मैं जलाता कैसे..
दूर दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिक्खे..
साल हां साल मेरे नाम बराबर लिक्खे..
कभी दिन मैं कभी रात मैं उठ कर लिक्खे..
तेरे खुशबू मैं बसे ख़त मैं जलाता कैसे..
तेरे खुशबू से भरे ख़त मैं जलाता कैसे..
प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे..
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे..
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ..
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ..
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ..
No comments:
Post a Comment